20100503

खेती के मोक्षमार्ग पर पंजाब

किसी दौर में अपनी "विकसित खेती" के दम पर देश का पेट भरने का दावा करनेवाला पंजाब उस खेती की ऐसा मार झेल रहा है कि माटी पानी और जीवन सब कुछ दूषित प्रदूषित हो गया. पंजाब में प्राकृतिक संसाधनों का ऐसा अतिक्रमण हुआ कि मजबूरन समाज को प्रतिक्रमण के रास्ते चलना पड़ा. रासायनिक खेती से आध्यात्मिक खेती के मोक्ष मार्ग की ओर यात्रा शुरू करनी पड़ी. प्रयोग के स्तर पर ही सही लेकिन आत्महत्या के लिए प्रयासरत पंजाब खेती के मोक्षमार्ग पर दोबारा लौटने लगा है.

पिछले दस-पंद्रह सालों में विश्व भर में खेती, पर्यावरण और प्राकृतिक संासधनों से जुड़ी एक नई बहस खड़ी हुई है। यह बहस है वर्तमान तकनीकों के खेती, पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों पर पड़ने वाले प्रभावों व दुष्प्रभावों की। यहां सवाल है कि क्या यह तकनीकें टिकाऊ हैं? क्या यह वहनीय हैं? लोगों ने आकलन किया कि खासकर खेती में जैसी तकनीकें पिछले पांच दशकों में आई हैं वे खेती करने वाले और उसके खेत दोनों का ही विनाश कर रही हैं।हरितक्रांति के नाम पर जो तकनीक लाई गईं उनसे खेती और खेतीहर दोनों बर्बाद हुए हैं। खेतों की मिट्टी जवाब दे गई है और किसान की खेती करने की इच्छाशक्ति भी। मिट्टी को कृषि रसायन, मशीनीकरण और विवेकहीन दोहन मार रहा है तो किसान को कर्ज़, बिमारी और सपने टूटने से उपजी उसकी निराशा।आज सारा देश जानता है कि जहां जहां हरितक्रांति आई-किसानों ने आत्महत्याएं भी वहीं की हैं। हरित क्रांति दरअसल तकनीक, निवेश, बाजारवाद और सिरे की स्वार्थपरता की भयावह घालमेल ही था। इसमें आई तकनीकें भी ऐसी कि जो किसान का मां समान धरती माटी से सम्बन्ध तोड़ दे।

तकनीकें कभी अकेले नहीं आतीं। इनके पीछे पीछे आती है इनकी सोच, इनका अर्थशास्त्र, इनका चिंतन, सम्बन्धों और समाज को देखने का दृष्टिकोण। कोई भी तकनीक अपने परिवेश से निरपेक्ष नहीं होती।वह देर सवेर से परिवेश को प्रभावित करती हैं। हर तकनीक के अपने विशिष्ट पदचिन्ह होते हैं। आज की भाषा में आप इन्हें कार्बन फुटप्रिंट्स कह सकते हैं। फिर जो तकनीक जिस सोच से निकली उसके पदचिन्ह भी वैसे ही होंगे।चूंकि तकनीकें किसी न किसी दर्शन व दृष्टिकोण से प्रेरित होती हैं इसलिए उनके पदचिन्ह कैसा नकारात्मक या सकारात्मक प्रभाव डालते हैं यह उनके पीछे के दर्शन पर निर्भर करता है। 50 बरस बाद हरितक्रांति ने जो अपने रंग दिखाए उसका आधार उनकी तकनीकों के पीछे का विश्व दृष्टिकोण रहा है। जहां धरती से मां वाले सम्बन्ध की कोई अवधारणा नहीं। जहां जननी और जन्म भूमि के र्स्वग से महान होने का संस्कार नहीं। जहां व्यक्ति, परिवार, समाज, परिवेश व प्राकृतिक तंत्र के बीच किसी सम्बन्ध का भाव ना हो। वहां से उपजी तकनीकें मां बेटे का सम्बन्ध तोड़ने वाली ही होंगी। यह बेटे को उकसायेंगी कि तू किस तरह अपनी मां से अधिकाधिक काम ले सकता है। पुत्र ने तकनीक के संस्कारों के प्रभाव से घरगीम्, भरणीम्, सुखदाम, वरदाम, मातरम् को दासी बना लिया। वह अपने धार्मिक कर्मकांड में धरती को मां मानता गया। परन्तु व्यवहार में उसे धरती से, उसके स्वास्थ्य से कोई सरोकार नहीं रहा। किसान धरती पुत्र से कुपुत्र बना दिया गया। विचित्र बात तो यह है कि यह कुकर्म सभी राजनीतिक धाराओं से प्रभावित किसानों व विज्ञानकों ने किया। इसमें भगवा से लेकर लाल झंडा उठाने वाले तमाम लोग शामिल रहे। भारत माता की जय भी बोलते रहे और माँ को जहर भी खिालाते रहे। साम्राज्यवाद मुर्दाबाद का नारा भी लगाते रहे और बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के दास भी बने रहे। कारण वही है - तकनीकों की अपनी सोच समझ साथ ही आती है।यह ऐसा पैकेज है जिसे पूरा ही अपनाना पड़ता है। आज इसी का परिणाम है कि जहां कि धरती सबसे अधिक उपजाऊ मानी गई वहीं हरित क्रांति सबसे ज्यादा दुष्प्रभाव हुआ। पंजाब में इसके प्रत्यक्ष उदाहरण है। देश का अन्न भंडार बनने और कहलाने का ऐसा नाटक चल ही यह आज पंजाब की भीषणतम त्रासदी बन गई है।

अगर किसी को यह देखना हो कि कभी अच्छी माने जाने वाली तकनीकें कैसा विनाश रचती हैं तो वह पंजाब आए।आप देखेंगे कि इस धरती का पानी या तो खत्म हो गया या जहरीला हो चुका है। मिट्टी क उर्वरता शक्ति समाप्त हो चुकी है। समूची भोजन श्रृख्ला विषाक्त है। यह देश के उस राज्य की दुर्दशा है जिसके बारे में अन्य प्रांतों के लोग कहते हेैं कि पंजाब जैसी खेती करनी है।यह देश के ज्यादातर किसानों का आर्दश राज्य रहा है। परन्तु आज स्थिति क्या है? पजाब भारत के कुल क्षेत्रफल का 1.5 प्रतिशत क्षेत्र है परन्तु देश में खपत होने वाले कुल जहरीले कीटनाशकों का कोई 18 प्रतिशत यहां इस्तेमाल होता है। फिर जिस प्रांत का नाम ही पानी के बहुतायत का संकेत करता हो उसमें 80 प्रतिशत भूक्षेत्र के भूजल का अत्याधिक दोहन हो चुका है। पांच पानियों का पंजाब आज बेआब हो रहा है। जहरीले कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते जो भोजन श्रंृखला विषाक्त हुई उसके भयंकर परिणाम आज सामने हैं।

आज पंजाब में कैंसर की स्थिति ऐसी है कि यहां मालवा क्षेत्र के एक इलाके को कैंसर पट्टी के नाम से जाना जाने लगा है।बठिंडा से बीकानेर जाने वाली रेल गाड़ी का नाम कैंसर ट्रेन पड़ गया। क्योकि मालवा के ज्यादातर कैंसर रोगी अपना इलाज करवाने राजस्थान के बीकानेर स्थित क्षेत्रीय कैंसर अस्पताल इसी गाड़ी से जाते हैं। कैंसर के अतिरिक्त विषाक्त भोजन श्रृंखला के कारण प्रजनन रोगांे की बाढ़ ही आ गई है।आज पंजाब में समय पूर्वप्रसंव यानि सतमाहे एवं अठमाहे बच्चों की गिनती लगातार बढ़ती जा रही है। तकनीकों द्वारा रचे विनाश ने पंजाब के हजारों किसानों को आत्महत्या करने को मजबूर भी किया है। आज पंजाब में लाखें किसान खेती छोड़ रहे हैं या छोड़ने की कगार पर हैं।परन्तु इस तमाम निराशाजनक स्थिति के बीच भी आशा के संदेशवाहक हैं। गत कुछ वर्षों में पंजाब में प्राकृतिक खेती का आंदोलन जांेर पकड़ रहा है। आज पंजाब के किसान हरितक्रांति की जहरीली तकनीकों से पिंड छुड़ाना चाहते हेैं। आज पंजाब में फिर से देसी गाय की बात हो रही है, जहरमुक्त खेत की बात चल निकली है। हरिक्रांति की हिंसक और प्रकृति विरेाधी तकनीकों का बदल आया महाराष्ट्र से। शुरूआत में नागपुर के श्री मनोहर भाऊ परचुरे और फिर आगे चलकर महारष्ट्र से ही अमरावती के कृषि गुरू श्री सुभाष पोलेकर ने पंजाब के किसानो का विशेष मार्गदर्शन किया। आज सुभाष पालेकर के बताए हुए ‘जीरो बजट कुदरती खेती’ के विचार के हजारों अनुयायी पंजाब में हैं। भगत पूर्ण सिंह द्वारा स्थापित पिंगलवाड़ा अमृतसर जैसी संस्था भी इस अभियान से जुड़ चुकी है।

सुभाष पालेकर का चिंतन सम्पूर्ण प्राणियोें के प्रति करूणा, प्रेम और सहअस्तित्व पर आधारित है। यह प्रकृति मां और धरती मां के विचार पर बांधा गया दर्शन है इस लिए इससे ऊपजी तमाम तकनीकें भी प्रकृति और धरती की सेवा करने वाली हैं। सुभाष पालेकर ने देसी गाय के गोबर और गौमूत्र से जीवामृत, बीजामृत, घनजीवामृत बनाने की विधियां विकसित की। जिनको प्रयोग करके आज पंजाब में हजारों किसान कृषि रसायनो के जाल से बाहर आए हैं। सुभाष पालेकर ने कृषि तकनीकों का ऐसा विचार किसान को दिया है जो उसकी मिट्टी को उपजाऊ बनाता है, पानी को बचाता है, अन्य प्राणियों के प्रति एक प्रेमभाव जगाता है और किसान को एक सचेतन विज्ञानी किसान बनाता है। वह किसान को धरती मां और समाज के प्रति उसके कर्तव्यों को निभाने की सीख, समझ और संस्कार देता है।

अपनी इन्हीं विशेषताओं के कारण जीरो बजट कुदरती खेती अमरावती, महाराष्ट्र से शुरू होकर आज पूरे भारत ही नहीं विश्व मे प्रतिष्ठत हो रही है। पंजाब की जहरमुक्ति का यह अभियान आजादी की लड़ाई सरीखी ही महत्वपूर्ण है। यह पंजाब के किसानों को हिसंक अर्थशस्त्र के चुंगल से मुक्त करवाऐगी। यह तकनीक, अर्थशास्त्र और विकास से वैकल्पिक मार्ग पर बढ़ाया गया एक छोटा परन्तु महत्वपूर्ण कदम है। श्री सुभाष पालेकर के शब्दों में -‘पराबलम्बन से स्वाबलम्बन की और राक्षसतत्व से संतत्व की ओर, असत्य से सत्य की ओर व्यष्टी से समष्टी की ओर और आगे परमेष्टी की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर, अज्ञान से ज्ञान की ओर, दुख से सुख की ओर, हिसंा से अहिंसा की ओर...यात्रा है...यही आध्यात्मिक कृषि का मोक्ष मार्ग है।’ इसी जीरो बजट कुदरती खेती मे स्वदेशी आंदोलन अन्तर्निहित है। इसमें भारत माता की सच्ची जयकार करने का सामर्थ्य भी.

(उमेन्द्र दत्त)

----------------------------------------------------------------------------------------------------कोई भी मूल्य एवं संस्कृति तब तक जीवित नहीं रह सकती जब तक वह आचरण में नहीं है.

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